जनेऊ/उपनयन/यज्ञोपवीत संस्कार मुहूर्त कब है | उपनयन संस्कार मुहूर्त 2025 | Upanayanan Muhurat dates
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आज हम हिंदू धर्म के जनेऊ/उपनयन/यज्ञोपवीत संस्कार मुहूर्त के बारे में जानेंगे। कि जनेऊ/उपनयन/यज्ञोपवीत संस्कार मुहूर्त कब है? क्योंकि बच्चे का जनेऊ संस्कार, हमारे हिंदू धर्म के 16 संस्कारों में से एक संस्कार है। इस संस्कार को आज के वक्त में ज्यादातर लोग विवाह के समय ही करते हैं। इस संस्कार को करने के लिए भी शुभ मुहूर्त को देखा जाता है।
इसलिए यहां पर जनेऊ/उपनयन/यज्ञोपवीत संस्कार का शुभ मुहूर्त दिया गया है। इस मुहूर्त में जनेऊ/उपनयन/यज्ञोपवीत संस्कार कर सकते हैं। लेकिन ध्यान रखने योग्य बात है। कि यह मुहूर्त सर्वजनिक मुहूर्त है। इसलिए अगर आप अपने जन्म तिथि से शुभ मुहूर्त को जानना चाहते हैं। तो आप हमें संपर्क कर सकते हैं।
जनेऊ/उपनयन/यज्ञोपवीत संस्कार मुहूर्त जनवरी 2025
दिनांक | वार | समय |
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15 जनवरी 2025 | बुधवार | सुबह 11:25 से दोपहर 1:02 तक |
16 जनवरी 2025 | गुरुवार | सुबह 11:21 से दोपहर 12:58 तक |
जनेऊ/उपनयन/यज्ञोपवीत संस्कार मुहूर्त फरवरी 2025
दिनांक | वार | समय |
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7 फरवरी 2025 | शुक्रवार | सुबह 8:22 मिनट से सुबह 9:50 तक, दोपहर 12:10 से दो बार 1:23 तक |
14 फरवरी 2025 | शुक्रवार | सुबह 10:57 से दोपहर 12:53 तक |
जनेऊ/उपनयन/यज्ञोपवीत संस्कार मुहूर्त मार्च 2025
दिनांक | वार | समय |
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10 मार्च 2025 | सोमवार | सुबह 9:26 से दोपहर 1:36 पर |
जनेऊ/उपनयन/यज्ञोपवीत संस्कार का मुहूर्त कैसे देखें?
अगर आप स्वयं जनेऊ/उपनयन/यज्ञोपवीत संस्कार का मुहूर्त देखना चाहते हैं। तो उसके लिए आपके पास पंचांग का होना अति आवश्यक है। क्योंकि पंचांग के माध्यम से ही आप नक्षत्र, तिथि, वार, लग्न आदि को देख पाएंगे। क्योंकि नक्षत्र, तिथि, वार, लग्न आदि को देखकर ही शुभ मुहूर्त का चयन किया जाता है।
आपकी सुगमता के लिए यहां पर नक्षत्र, तिथि, वार, लग्न आदि के बारे में संपूर्ण जानकारी दिया गया है। जिससे जनेऊ मुहूर्त का चुनाव कर सकते हैं।
नक्षत्र – जनेऊ संस्कार मुहूर्त के लिए अश्विनी, हस्त, पुष्य, तीनों उत्तरा, रोहणी, आश्लेषा, पूर्नवसु, स्वाति, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, मूल, चित्रा, मृगशिरा, अनुराधा, तीनों पुर्वा, रेवती, आर्द्रा आदि नक्षत्र शुभ होते हैं।
तिथि – जनेऊ संस्कार मुहूर्त के लिए शुक्ल पक्ष की द्वितीया, तृतीया, पंचमी, दशमी, एकादशी और द्वादशी शुभ होते हैं। और कृष्ण पक्ष की द्वितीया, तृतीया और पंचमी शुभ होता है।
वार – उपनयन संस्कार मुहूर्त के लिए रविवार, सोमवार, बुधवार, बृहस्पतिवार और शुक्रवार शुभ होता है।
लग्न – लग्नेश, शुक्र, गुरु और चंद्रमा यह छठवें (6), आठवें (8) स्थान में हो, बारहवें (12) स्थान में चन्द्रमा व शुक्र हो, तथा लग्न में, आठवें (8), पांचवें (5) स्थान में पाप ग्रह हो तो अशुभ होता है।
लग्न से 6, 8, 12 स्थान में शुभ ग्रहों या इनसे भिन्न स्थान में हो, और 3, 6, 11 स्थान में पाप ग्रहों और पूर्ण चंद्रमा वृष या कर्क राशि में होकर लग्न में हो तो यह शुभ होता है।
विशेष –
• जन्म या गर्भाधान समय से पांचवे (5) या आठवें (8) वर्ष में ब्राम्हण का जनेऊ कराना श्रेष्ठ होता है।
• जन्म या गर्भाधान समय से छठवें (6) में या ग्यारहवें (11) वर्ष में क्षत्रिय का जनेऊ कराना चाहिए।
• जन्म या गर्भाधान समय से आठवें (8) या बारहवें (12) वर्ष में वैश्य का जनेऊ कराना चाहिए।
• दूना वर्ष में जनेऊ कराना मध्यम होता है।
• शनिवार, रात्रि में, दोपहर के बाद, प्रातः, शाम काल, मेघ गर्जन इत्यादि में जनेऊ नहीं कराना चाहिए।
वर्जित – भद्रा और कोई दोष में जनेऊ संस्कार मुहूर्त नहीं करना चाहिए।
janeu/upnayan sanskar muhurat
जब हमारे हिंदू धर्म में कोई बच्चा जन्म लेता है। तो उसके साथ 16 संस्कार किए जाते है। जो कि 16 संस्कार जन्म से लेकर मृत्यु तक होते हैं। प्रत्येक संस्कार का अपना एक समय निर्धारित किया गया है। इन 16 संस्कारों में एक संस्कार उपनयन संस्कार भी है। जिसको हम 10वां संस्कार भी करते हैं। लेकिन आमतौर पर लोग जनेऊ संस्कार के नाम से ही जानते हैं।
सभी 16 संस्कार का अपना एक महत्व होता ही है। पर जनेऊ/उपनयन संस्कार का एक विशेष महत्व है। इस जनेऊ संस्कार को पूरे रीति-रिवाज के साथ और मंत्रों के उच्चारण के साथ उस बालक को जनेऊ धारण कराया जाता है।
शास्त्रों की माने तो जब बच्चे का जनेऊ धारण हो जाता है। तभी उसको शिक्षा ग्रहण करने के योग्य माना जाता है। शास्त्रों में यह भी माना गया है, कि अगर जिस बच्चे का जनेऊ धारण नहीं किया जाता है। तो उसको ना विद्या धारण, पूजा-पाठ और उसके साथ व्यापार आरंभ करना सब कुछ निरर्थक ही होता है।
जनेऊ क्या है? (Janeu kya hai)
जनेऊ क्या है? आमतौर पर इसे सभी लोग जानते हैं। लेकिन अगर जिन लोगों को इसके बारे में नहीं मालूम है। तो उनके लिए हम बता दें, कि जनेऊ तीन धागा का बना हुआ होता है। जिसको व्यक्ति बाएं कंधे से लेकर दाहिनी कलाई की ओर पहनता है।
इन तीन धागा का भी अपना एक महत्व है। ऐसा माना जाता है, कि यह तीन धागा तीन देवी के शक्ति का प्रतीक है। यानी धन की देवी मां लक्ष्मी, शक्ति की देवी मां पार्वती और ज्ञान की देवी मां सरस्वती का प्रतीक माना जाता है।
जनेऊ/उपनयन संस्कार का महत्व क्या है? (janeu/upnayan sanskar ka mahatva)
शास्त्रों के अनुसार देखा जाए तो जनेऊ धारण करने का समय सबके लिए भिन्न-भिन्न बताया गया है। क्योंकि ब्राम्हण के बालक के लिए 8 वर्ष की आयु में जनेऊ धारण करना चाहिए। उन्हें क्षत्रिय के बालक के लिए 11 वर्ष की आयु में और वह वैश्य के लिए 12 वर्ष की आयु में जनेऊ धारण करना चाहिए।
जनेऊ संस्कार के बारे में यह भी मान्यता है, कि जिस बच्चे का जनेऊ संस्कार हो जाता है। तो उस बच्चे का पिछले जन्म के सभी पाप धुल जाते हैं। और उसका एक नया जन्म होता है। हालांकि आजकल विवाह के समय जनेऊ संस्कार किया जाने लगा है।
उपनयन/जनेऊ संस्कार कैसे किया जाता है ? (upnayan sanskar kaise kiya jata hai?)
जनेऊ संस्कार के बारे में भी जान लेते हैं। कि जनेऊ संस्कार कैसे किया जाता है? इसको आप नीचे समझ सकते हैं।
• जिस दिन जनेऊ संस्कार होता है। उस दिन एक यज्ञ का आयोजन भी होता है।
• और उस यज्ञ में वह बालक बैठता है। जिसका जनेऊ संस्कार किया जाना होता है। और उसके साथ उसके परिवार वाले भी बैठे होते हैं।
• इस यज्ञ में वह बालक धोती यानी बिना सिले हुए कपड़े पहनता है। और अपने हाथ में एक छड़ी लेता है।
• अब बालक को खड़ाऊ और गले में पीले कपड़े पहना दिया जाता है।
• अब इस बालक का मुंडन किया जाता है। यानी उसके सर का बाल मुंडवा दिया जाता है। और एक छोटी (चुर्की) छोड़ दिया जाता है।
• इस बालक के माथे पर चंदन का लेप लगाया जाता है।
• अब बालक जनेऊ संस्कार के लिए तैयार हो गया है। अब जनेऊ को विभिन्न मंत्रों के साथ तैयार किया जाता है। जब जमी हुई तैयार हो जाता है। सबसे पीले रंग में रंग दिया जाता है।