होलिका दहन 2025: तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व | पूरी जानकारी
होलिका दहन 2025 कब है? जानें होलिका दहन की तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और पौराणिक कथा। होलिका जलाने का महत्व और धार्मिक अनुष्ठान की संपूर्ण जानकारी यहाँ पढ़ें।

होलिका दहन क्या है?
होलिका दहन हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जिसे फाल्गुन पूर्णिमा की रात को मनाया जाता है। इसे ‘चोटी होली’ या ‘होलिका जलाना’ भी कहा जाता है। इस दिन बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाया जाता है। यह उत्सव होली के एक दिन पहले मनाया जाता है, जिसमें होलिका दहन की रस्म निभाई जाती है और अगले दिन रंगों वाली होली खेली जाती है।
होलिका दहन की पौराणिक कथा
होलिका दहन का संबंध भक्त प्रह्लाद और हिरण्यकशिपु की कथा से जुड़ा है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, हिरण्यकशिपु एक असुर राजा था, जिसने भगवान विष्णु से घृणा के कारण अपने पुत्र प्रह्लाद को विष्णु भक्ति छोड़ने के लिए मजबूर किया। लेकिन प्रह्लाद अपनी भक्ति पर अडिग रहा।
हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका की सहायता ली, जिसे वरदान प्राप्त था कि वह अग्नि में नहीं जल सकती। उसने प्रह्लाद को गोद में बैठाकर आग में प्रवेश किया, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से होलिका जल गई और प्रह्लाद सुरक्षित बच गया। तभी से इस दिन को होलिका दहन के रूप में मनाया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
होलिका दहन 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त
होलिका दहन 2025 की तिथि: 13 मार्च 2025 (गुरुवार)
होलिका दहन का शुभ मुहूर्त:
- होलिका दहन का समय: रात 10:37 से (मुहूर्त बदल सकता है, पंचांग के अनुसार देखें)
- भद्रा समाप्ति समय: रात 10:37 तक
- पूर्णिमा तिथि आरंभ: 13 मार्च 2025 को सुबह 10:02
- पूर्णिमा तिथि समाप्त: 14 मार्च 2025 को सुबह 11:11
होलिका दहन पूजा विधि
होलिका दहन के लिए आवश्यक सामग्री:
- लकड़ियां और उपले (गोबर के कंडे)
- गंगा जल
- रोली, अक्षत (चावल)
- हल्दी, गुलाल
- नारियल
- गुड़, चना, गेहूं
- फूल और कच्चा सूत (धागा)
पूजा विधि:
- सबसे पहले एक पवित्र स्थान पर गोबर के कंडे और लकड़ियों से होलिका तैयार करें।
- परिवार के सभी सदस्य एकत्रित होकर पूजा करें।
- गंगा जल से होलिका को शुद्ध करें और पूजन सामग्री अर्पित करें।
- होलिका के चारों ओर सात बार कच्चा सूत लपेटें।
- पूजा के दौरान भक्तिमय भजन और मंत्रों का जाप करें।
- शुभ मुहूर्त में अग्नि प्रज्वलित करें और गुड़, गेहूं, चना आदि अग्नि में अर्पित करें।
- होलिका दहन के बाद उसकी राख को तिलक के रूप में माथे पर लगाएं।
होलिका दहन का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व
धार्मिक महत्व:
- यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
- भगवान विष्णु की भक्ति और विश्वास को दर्शाता है।
- घर से नकारात्मक ऊर्जा और बुरी शक्तियों को दूर करने के लिए इसे शुभ माना जाता है।
वैज्ञानिक महत्व:
- होलिका दहन से वातावरण में मौजूद हानिकारक जीवाणु और कीटाणु नष्ट हो जाते हैं।
- बदलते मौसम में यह स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है।
- इस अवसर पर चना, गेहूं और अन्य अन्न को भूनने से उनमें मौजूद पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ जाती है।
होलिका दहन के बाद धूलिवंदन (रंगों की होली)
होलिका दहन के अगले दिन धूलिवंदन या रंगों की होली मनाई जाती है। इस दिन लोग रंग, अबीर, गुलाल से होली खेलते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. होलिका दहन क्यों मनाया जाता है?
होलिका दहन अच्छाई की बुराई पर जीत का प्रतीक है। यह भक्त प्रह्लाद और उसकी बुआ होलिका की पौराणिक कथा से जुड़ा हुआ है।
2. होलिका दहन का सही समय क्या होता है?
होलिका दहन फाल्गुन पूर्णिमा की रात को किया जाता है, और इसका सही समय पंचांग के अनुसार तय किया जाता है।
3. होलिका दहन में क्या अर्पण किया जाता है?
होलिका दहन में गेंहू, चना, गुड़, नारियल, और हल्दी आदि अर्पण किए जाते हैं।
4. क्या महिलाएं होलिका दहन की पूजा कर सकती हैं?
हाँ, महिलाएं भी होलिका दहन की पूजा कर सकती हैं और परिवार की सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना कर सकती हैं।
5. होलिका दहन और रंगों की होली में क्या अंतर है?
होलिका दहन बुराई के नाश का प्रतीक है और इसे होली के एक दिन पहले जलाया जाता है, जबकि रंगों की होली अगले दिन खेली जाती है।
होलिका दहन का त्योहार हमें सिखाता है कि चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों, सच्चाई और अच्छाई की हमेशा जीत होती है। यह दिन केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। सही विधि से होलिका दहन करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
आप सभी को होलिका दहन और होली की हार्दिक शुभकामनाएँ!